बूढ़ा चित्रकार और लड़की / स्वप्निल श्रीवास्तव
एक बूढ़े चित्रकार की ज़िन्दगी में
शरीक होने के बाद, मशहूर हो गई थी
वह लड़की
वरना उसे कौन जानता था
वह ठीक से कूँची नहीं पकड़ पाती थी
आज वह रंगों से खेल रही है
चित्रकार के आँखों में जो चमक
दिखाई दे रही है, उसके पीछे
लड़की का मुस्कराता हुआ चेहरा है
रंगों ने उनके उम्र के अन्तर को
कम कर दिया था और वे समवयस्क
हो गए थे
बूढ़ा चित्रकार उस लड़की को उन पहाड़ी जगहों
पर ल्रे जाता था — जहाँ से उसके बचपन की
शुरूआत हुई थी
वह पहाड़ पर बसे स्कूल की ओर
इशारा करता था — जहाँ वह अपने बस्ते
के साथ चढ़ता – उतरता था
उस नदी को देख कर वह उदास हो जाता था
जहाँ तैरते हुए डूब गए थे, उसके पिता
कभी-कभी उसकी माँ अपने पति की
याद में दीपक विसर्जित करने जाती थी
लड़की उसकी तरह की पेण्टर नहीं
बन पाई थी — लेकिन वह ज़िन्दगी के
हर रंग से वाकिफ़ थी
वह चित्रकार के भीतर छिपे बच्चे को
पहचानती थी
चित्रकार बच्चों की तरह हँसता था
और हँसते - हँसते लड़की की गोद में
खरगोश की तरह छिप जाता था