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बूढ़ा दिया / कविता भट्ट
Kavita Kosh से
अमावस की
कल थी काली रात
मैं वह दिया
दीपमालिका का जो-
अँधियारे से
जूझा पूरी रात हूँ
जगमगाता
कोना-छत-मुँडेर
मंदिर-घर
रौशन की गलियाँ
कल ही हुआ
पूजन व वंदन
अभिनंदन
आज पड़ा हुआ हूँ
एक कोने में
घर के बुजुर्ग-सा
फेंका जाऊँगा
अब कल गंगा में
है न आश्चर्य?
नाम दिया जाएगा
इसको विसर्जन !