भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बूढ़ा नथमल / ओम पुरोहित ‘कागद’

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जोते-जोत हल
तन से
बरसाता है जल
बूढ़ा नथमल
ताकता है आकाश
जहां
दूर-दूर तक
पाता नहीं जल
बस
रह जाता है
जल-जल,
नथमल ।