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बूढ़ा वृक्ष / अनुभूति गुप्ता
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					तेज अन्धड़ में 
बूढ़ा वृक्ष 
जो सुघड़ था 
दो दशक पहले तक,
अब...
विरक्ति से भरा हुआ है,
अवसादी हो गया है,
घनापन खो बैठा है, 
हल्केपन से भर चुका है।
बचा-खुचा है तो, 
व्यथाओं
यातनाओं
मृत इच्छाओं का दंश है।
व्यंग की ज़हरीली निशा
बूढ़े वृक्ष को
एकाकीपन की 
अँधेरी सीढ़ियों की ओर 
धकेलती है ।
जोकि-
भयंकर दुःस्वप्न को 
सच मानकर
जीवनभर कुढ़ता रहता है।
	
	