भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बूढ़ी अँगुली / जय छांछा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैंने सोचा
कई तरह से सोचा ।
आंदोलित हुए मन से सोचा / शांत मन से सोचा
उठकर सोचा / सोते हुये सोचा
एकांत में सोचा / कोलाहल में सोचा
तृप्त होकर सोचा / निराहार सोचा
उजाले में सोचा / अंधेरे में सोचा
विपनामा में सोचा / सपने में सोचा
प्रत्येक पल सोचने पर
सोचते-सोचते
मेरे ह्रदय में बनी
विशाल तुम्हारी प्रतिमा को
साक्षी रखकर
हमारे प्रेम की
सच्चाई रगड़ने के लिए
मेरे पैर की बूढ़ी अंगुली
एकदम तैयार है
क्या तुम भी तैयार हो?

मूल नेपाली से अनुवाद : अर्जुन निराला