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बूढ़ी औरत / प्रेम गुप्ता 'मानी'

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मूंज की चारपाई पर बिछे
मैले-कुचैले बिस्तर पर
पड़ी,
लकवाग्रस्त
वह् बूढ़ी औरत
आज भी अपने बारे में नहीं सोचती
वह सोचती है
तो सिर्फ़
अपने उन बच्चों के बारे में
जो पूरी तरह जवान हो गए हैं
और खुद
सोच सकते हैं
अपने परिवार के बारे में
अपनी नए ज़माने की पत्नी की
हीरों जड़ी अंगूठी के बारे में
या दूर बहुत दूर समन्दर के पार
अमेरिका कि यूनिवर्सिटी में पढ़ते
अपने बेटे के बारे में
पर, वे नहीं सोचते
माँ अभी ज़िन्दा है
सोचना उन्हें है
खर्च के बारे में
बेटे की मोटी फीस के बारे में
रसोई से उठती सोंधी गंध के बारे में
बूढ़ी औरत
जब जवान थी
उसकी आँखों में इंद्र्धनुषी सपने थे
उन सपनों से कुछ रंग चुरा कर
उसने अपने घर की
उन दीवारों को सजाया था
जहाँ,
उसके स्वर्गवासी पति की एक भी तस्वीर नहीं
बूढ़ी औरत
नहीं जानती कि
उन दीवारों पर उसकी तस्वीर होगी कि नहीं
पर,
उसके बेटे जानते हैं
कि
इस बूढ़ी औरत के मरते ही
उनका पूरा घर
इंद्रधनुष के रंग से भर जाएगा
बूढ़ी औरत ने
अपने पति के निवालों से
जो चंद टुकड़े चुराए थे
उन्हें,
उस बड़े से बक्से में संजो कर रखा है
और जो ठीक
उसके बदबुआते पलंग के नीचे रखा है
बूढ़ी औरत
अब भी अपने बारे में नहीं सोचती
वह अब भी
अपने आँसुओं से कुछ कतरा बचा कर
घड़े को भर रही है
ताकि,
उसके न रहने पर
उसके बच्चे प्यासे न रह जाएँ
उसका गला पूरी तरह चटका है
पर,
उसके खुद के पास पानी की एक बूंद भी नहीं
पलंग की बगल में रखे
कमोड का पानी सूखा है
और आसपास कोई नहीं
सिवा सन्नाटे के
बूढ़ी औरत
मौत का इंतज़ार भी नहीं करती
जब तक आँखें खुली हैं
बच्चों की परछाई तो है आसपास
पर काश,
बूढ़ी औरत वक़्त से पहले
अपनी ज़िन्दगी के बारे में सोचती
और उस बारे में भी
कि
दुख में परछाई भी साथ छोड़ती है
पर,
बूढ़ी औरत क्या करे
सदियों से ऐसी बूढ़ी औरतें
दिमाग को ताखे पर रख कर
दिल से सोचती हैं
उस दिल से
जो बेटे द्वारा काट दिए जाने पर भी
चिहुंकता है कि
कहीं बेटे की उँगली में
चाकू की धार तो नहीं लगी?