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बूढ़े जैसे दिन / रामकिशोर दाहिया
Kavita Kosh से
आँगन-खोरी
गली-चौक में
कूड़े जैसे दिन
खाँस रहे
खटिया पर बैठे
बूढ़े जैसे दिन
उमर-पात को
दूर-दूर तक
खरपतवार ढँके
अपने हाथों
मेंहदी जैसे
तरुणी पीस रखे
आंत्रशोथ में
कांति मुखों की
ढूँढे जैसे दिन
आड़ी-तिरछी
रेखाओं का
तन पर जाल घना
रक्षा कवच
अस्थियों का यह
सूखा चाम बना
कामकाज से
हमें बाँधते
जुड़े जैसे दिन
-रामकिशोर दाहिया