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बूढ़े बच्चे / कुमार मुकुल

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अभाव से नहीं मरते बच्चे

बल्कि ऊबते हैं बचपन से

और जल्दी-जल्दी बड़े हो जाते हैं

खड़े हो जाते हैं पाँवों पर


जल्दी आती है उनकी जवानी

और बढ़ाती है पूंजी को

गूलर के फूल की तरह

फिर ख़ुद ग़ायब हो जाती है


जल्दी आता है उनका बुढ़ापा

और काटे नहीं कटता


फिर बूढ़े बच्चे रचते हैं अपना दर्शन

कि बूढ़े के पास अनुभव होता है

लाचारी होती है

विश्वस्त होता है बूढ़ा

कि लाचार और विश्वस्त अनुभवों की

अच्छी क़ीमत मिलती है बाज़ार में।