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बूढा बरगद का पेड़ बोला / किशन कारीगर

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मेरी ही टहनियों को काटकर
छाँव की तलाश में भटक रहे लोग
कराहते हुए कहीं यहीं पर जैसे
बूढा बरगद का पेड़ बोला

कुछ याद है "किशन" की सभ भूल गए?
अपने दादाजी की अंगुलियाँ थामे
मुझसे मिलने तुम भी आते
वो मुझसे और तुम चिड़ियों से बतियाते

मेरी डाल पे बैठे
वो चिड़ियों की टोली
हम सभी अरोसी-पड़ोसी बन जाते
बतियाते और कितनी खुशियां बाँटते

तुम सभी ने काट दी मेरी टहनियाँ
अब उन चिड़ियों के घर भी उजाड़ दिए
दर्द से कराह रहा मैं कब से
पर कोई नहीं सुनता

अब कोई भी ईधर को नहीं आता
न ही कोई पेड़ लगाता
कराहते हुए यहीं पर जैसे
बूढा बरगद का पेड़ बोला

ठंडी हवा, मीठे फल, धूप-छाँव
सब कुछ मैं तुम सबको देता
खुद जहरीला कार्बन पीकर रह लेता
पर शुद्ध ऑक्सीजन सभी को देत

फिर भी अंधाधुंद बृक्षों को काट रहे
प्रकृति की दी हुई चिजें उजाड़ रहे
पर्यावरण सरंक्षण की कौन सोचे?
बूढा बरगद का पेड़ बोला