भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बेंग आरो मछली / अमरेन्द्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

‘क’ सें काजल, कौआ, काँटी
‘म’ सें मूसोॅ, मैना, माँटी
जना खाय छै बगरो, मैना
ठीक होन्है केॅ तों सब वैना
खैलेॅ जो सब बाँटी-बूटी
सोॅर बराबर काटी-कूटी
बेंग उछललोॅ कुइयाँ में छै
असकल्ले नै गोइयाँ में छै
मछली उछलै पोखरी में
जना समाटे ओखरी में।