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बेंतबाज़ी : एक दग़िस्तानी लोक-खेल / रसूल हम्ज़ातव / मदनलाल मधु

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मैं हमारे एक सीधे-सादे लोक-खेल के बारे में बताना चाहता हूँ। इस खेल में छन्द बनाने की क्षमता, हाज़िरजवाबी और जल्दी से ठीक-ठीक शब्द ढूँढ़ पाने की क्षमता का आपसी मुक़ाबला होता है। दग़िस्तान के गाँव-गाँव में लोग यह खेल खेलते हैं। जाड़ों की लम्बी रातों में गाँव के बच्चे, किशोर-किशोरियाँ किसी पहाड़ी घर में जमा हो जाते हैं और कविता बनाने का यह खेल खेलते हैं यानी बेंतबाज़ी करते हैं। एक छोटी-सी छड़ी लाई जाती है। कोई किशोरी उसे अपने हाथ में पकड़ लेती है और उससे किसी किशोर को छूती है और गाती है :

             ले लो तुम यह छड़ी, सभी से जो सुन्दर
             और चुनो सुन्दरी, जो सबसे हो बढ़-चढ़कर ।

वह किशोर किसी किशोरी को चुन लेता है और वह स्टूल पर बैठ जाती है। फिर इन दोनों के बीच कविता में बातचीत शुरू होती है।

अरी हसीना, अरी हसीना,
नाम तुम्हारा क्या है ? यह तो बतलाओ,
अरी हसीना, अरी हसीना,
किस कुल की, किस माता-पिता की, समझाओ ।

बाक़ी सभी किशोर-किशोरियाँ तालियाँ बजाते हुए गाते हैं : आई - दाई - दालालाई।

अपना नाम बताया मैंने
किसी और को नहीं, तुम्हें,
वचन प्यार का दे बैठी हूँ
किसी और को नहीं, तुम्हें ।

बाक़ी सभी किशोर-किशोरियाँ तालियाँ बजाते हुए गाते हैं : आई - दाई - दालालाई।
इसके बाद किशोरी अपनी जगह से उठती है और किसी दूसरे किशोर को चुनती है, जो किशोरी की जगह पर बैठ जाता है। यह नया जोड़ा फिर से नई बातचीत शुरू करता है।

किशोरी :
हिम से पर्वत ढके जा रहे
राह न कहीं नज़र आए
ढूँढ़े घास मेमना प्यारा
कहाँ उसे, पर वह पाए ?

किशोर :
हिम तो हर क्षण पिघला जाता
बहे रुपहली हिम-धारा,
घास वक्ष पर तेरे पाए
अरे, मेमना वह प्यारा ।

बाक़ी सभी किशोर-किशोरियाँ तालियाँ बजाते हुए गाते हैं : आई - दाई - दालालाई।
और एक नया जोड़ा सामने आ जाता है।

किशोरी :
शीतल जल का कुआँ जहाँ पर
निकट वहीं रहता अजगर,
बकरे का पानी पी लेना
वह कर देता है दूभर ।

किशोर :
बेशक रहे वहाँ पर अजगर
नहीं किसी को उसका डर,
तेरी आँखों के प्यालों से
वह जल पी लेगा जी भर ।

बाक़ी सभी किशोर-किशोरियाँ तालियाँ बजाते हुए गाते हैं : आई - दाई - दालालाई।
और एक नया जोड़ा सामने आ जाता है।
 
किशोर :
दर्रे में तूफ़ान गरजता
बिछी नदी पर हिम - चादर,
तुमसे शादी करना चाहूँ
और बसाना अपना घर ।

किशोरी :
किसी दूसरी गली, गाँव में
ढूँढ़ो तुम अपनी दुलहन,
नहीं तीतरी अपना सकती
मुर्गीख़ाने का बन्धन ।

आई - दाई - दालालाई । सभी ज़ोर-ज़ोर से हँसते हैं और तालियाँ बजाते हैं।

रूसी भाषा से अनुवाद : मदनलाल मधु