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बेईमानों के नाम नया साल लिखना चाहता हूँ / दयानन्द पाण्डेय

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नौकरी नहीं है नया साल लिखना चाहता हूँ
बेईमानों के नाम नया साल लिखना चाहता हूँ

चार सौ बीसों के हाथ में हैं सब नौकरियाँ
देशद्रोहियों के हाथ देश लिखना चाहता हूँ

तिजोरी जैसे भी हो भरती रहे तुम्हारी हरदम
देश जाए भाड़ में यह गीत लिखना चाहता हूँ

बेरोजगारी का दंश नपुंसक बना देता है
प्रेम पत्र में यह बात ख़ास लिखना चाहता हूँ

नदी कोहरा धुंध सब कुछ है इस ठंड में
माशूका नहीं है बेक़रार लिखना चाहता हूँ