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बेक़रारी के क़रारों को न छेड़े कोई / श्याम कश्यप बेचैन
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बेक़रारी के क़रारों को न छेड़े कोई
मेरे जीने के सहारों को न छेड़े कोई
गली से भीड़ का रेला गुज़र गया कब का
बेसबब गर्द-ग़ुबारों को न छेड़े कोई
टूट जाएँगे उजालों में ये रिश्तों के भरम
इन धुँधलकों की दीवारों को न छेड़े कोई
मैं बजूँगा तो थिरक उट्ठेंगे दुनिया के क़दम
मेरे एहसास के तारों को न छेड़े कोई
आज की रात यहाँ चाँदनी नहाएगी
आज दरिया के किनारों को न छेड़े कोई
इनके साये में मुसाफ़िर पनाह लेते हैं
इन दरख़्तों की कतारों को न छेड़े कोई