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बेगाँ आवो प्यारा बनवारी म्हारी ओर / भारतेंदु हरिश्चंद्र
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बेगाँ आवो प्यारा बनवारी म्हारी ओर।
दीन बचन सुनताँ उठि धावौ नेकु न करहु अबारी।
कृपासिंधु छाँड़ौ निठुराई अपनो बिरुद सँभारी।
थानै जग दीनदयाल कहै छै क्यों म्हारी सुरत बिसारी।
प्राण दान दीजै मोहि प्यारा हौं छूँ दासी थारी।
क्यों नहिं दीन बैण सुनो लालन कौन चूक छे म्हारी।
तलफैं प्रान रहें नहिं तन में बिरह-बिथा बढ़ी भारी।
’हरीचंद’ गहि बाँह उबारौ तुम तौ चतुर बिहारी॥