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बेघर लोग / शंकरानंद

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1.

वे जहाँ बसते हैं
नहीं सोचते कि इस बार फिर बेघर होंगे
बड़ी मुश्किल से बसते हैं वे इस तरह उजड़-उजड़ कर
जी तोड़ मेहनत से बनाते है वीराने को रहने लायक
उनकी थकान भी नहीं मिटती कि
फिर उजाड़ दिए जाते हैं वे ।

2.

जब भी गोली चलेगी
वे बच नहीं पाएँगे
जब भी बम गिरेगा
उड़ेंगे उनके चीथड़े
कभी उन्हें छिपने की जगह नहीं मिलेगी
कोई उन्हें अपने घर नहीं बुलाएगा
आँधी में वे पत्तों की तरह उड़ा करते हैं ।