भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बेचैनियों के रंग सवालो में भर गये / मनोज अहसास

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बेचैनियों के रंग सवालो में भर गये
मंज़िल से पूछता हूँ कि रस्ते किधर गये

दिल को निचोड़ा इतना कि अहसास मर गये
खुद को बिगाड़ कर तुझे हम पार कर गये

मुझको उदास देखा जो मिलने के बाद भी
वो अपने दिल का दर्द बताने से डर गये

पूनम की शब का चाँद जो खिड़की पे आ गया
कमरे में मेरे यादों के गेसू बिखर गये

साहिल की कैद में कहीं जलती है इक नदी
मेरे ख्याल रेत के दरिया में मर गये

वीरानियों को अपना मुकद्दर समझ लिया
सारे फरेब सहके वो चुप में उतर गये

महताब पर नहीं है हवा भी सकून भी
सन्नाटा दिल में भरने को हम क्यों उधर गये