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बेचैन लागै छै / कस्तूरी झा 'कोकिल'
Kavita Kosh से
तोरा बिना मोॅन हमरोॅ कटियो टा नैं लागै छै
पिछला तस्वीर सब एकाँ एकी आबै छै।
आँखी में नीन नैं
मोॅनों में चैन नैं।
अकेला बिछौना पर
मधुर-मधुर बैनैं।
हिरदय में हरदम तूफान लागै छै।
रातों इंजोरिया निझुआन लागै छै।
व्याकुल हमेशा परान लागै छै।
सम्भै छै धड़फड़ में,
सुनतै की हड़बड़ में,
रुकतै केॅ गड़बड़ में
जागै छै बंढ़ चढ़ में।
तनियाँ नैं नीकोॅ दिन रैन लागै छै।
तोरा बिना मोॅन हमरोॅ बेचैन लागै छै
कखनूँ कुछ खाना छै,
जीवन बचाना छै।
तोरे गीत गाबी केॅ
समय बिताना छै।
पता नैं कखनी कुछ नैन लागै छै?
काँटा रंग कोयली केॅ बैन लागै छै।
तोरा बिना मोॅन हमरोॅ बेचैन लागै छै
तनियों नैं नीकेॅ दिनरैन लागै छै।
24/06/15 सवा दस बजे। बड़की भौजी का द्वादश कर्म