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बेज़बानों की ज़बानों से बयां हो जाऊँगा / सूरज राय 'सूरज'

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बेज़बानों की ज़बानों से बयाँ हो जाऊँगा।
क़त्ल मैं गूंगे का हूँ, ख़ूं से अयाँ हो जाऊँगा॥

मैं हवा का एक क़तरा बुलबुले की शक़्ल में
साँस तेरी मिल गई तो मैं रवां हो जाऊँगा॥

हो गया वह मुतमइन मेरी ज़ुबाँ को काटकर
क्या ज़ुबाँ कटने से ही मैं बेज़ुबां हो जाऊँगा॥

जब मेरा बेटा चलाएगा मुझे उंगली पकड़
सौ बरस का होऊँगा तो भी जवां हो जाऊँगा॥

मैं ज़मीं का दर्द हूँ इन्सां मुझे महसूस कर
एक दिन वरना तड़प के मैं फ़ुग़ाँ हो जाऊँगा॥

आग हाथों में लिये ऐ शाह मुश्किल में न पड़
झोपड़ा हूँ चन्द लम्हों में धुआँ हो जाऊँगा॥

एक कोरा हाशिया हूँ मैं किताबे-वक़्त का
मुझमे लिख जा ऐ मुहब्बत दास्तां हो जाऊँगा॥

एक पल मेरे लिए "सूरज" तू बनके देख ले
उम्र भर तेरे लिए मैं आसमां हो जाऊँगा॥