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बेटा घर अब आओ / राहुल शिवाय
Kavita Kosh से
बाबूजी का खत आया है
बेटा घर अब आओ
माँ खटिया पर लेटी बबुआ
केवल नाम तुम्हारा लेती
मेरे भी अब हाथ कांपते
अब मुश्किल है लखना खेती
बटेदार से सौ झंझट हैं
आकर तुम सुलझाओ
दशरथ बाबू के बच्चों के
भाईचारे का था किस्सा
मगर आज लछमन-सा भाई
दाब रहा है अपना हिस्सा
नहीं अकेला बाप तुम्हारा
उनको यह दिखलाओ
बेटा माना शहर तुम्हारा
आज भरण-पोषण करता है
पर क्या कोई पितृ-डीह को
धन-दौलत अपनी तजता है
तीन-चार माहों में इक दिन
तो तुम रहकर जाओ