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बेटियाँ हैं तो ये संसार सुहाना लगता / डी. एम. मिश्र

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बेटियाँ हैं तो ये संसार सुहाना लगता
बेटियाँ हैं तो ये खुशियों का ख़ज़ाना लगता

बेटियाँ हैं तो घर में चहल पहल रौनक़ है
बेटियों का तो हर इक लफ़्ज़ तराना लगता

बेटियाँ तो पराया धन हैं चली जायेंगी
आपका ये ख़याल बहुत पुराना लगता

वक़्त के साथ लोग खु़़दबख़ुद बदल जाते
सोच को किन्तु बदलने में ज़माना लगता

बात बेटों की मानने में कोई देर नहीं
बेटियों के लिए क्यों इतना बहाना लगता