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बेटियों की उम्र आँकते दोस्त / मिथिलेश श्रीवास्तव

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बीमार पिता को देखने
उनके दोस्त घर आया करते
तबीयत के बारे में वे उनसे ही पूछते
जब माँ से बात होती
अपनी चिन्ताओं से
बेटियों की उम्र आँकते
उन दोस्तों की एक बड़ी चिन्ता थी
बेटियों को पढ़ा-लिखाकर क्या होगा
माँ परेशान रहती
बीमार पिता का लोग भरोसा नहीं करते

तीन ब्याह दी गईं
जल्दी ही बड़ी बेटी के पति ने उसे छोड़ दिया
नौकरी के लिए वह फिर से पढ़ेगी

दो बहनें शहर में हैं
वे पतियों के साथ आती हैं कभी-कभी
पतियों के साथ चली जाती है

ताख़ों में सहेज कर रखे हुए
पढ़ाई के दिनों के जीते हुए
कप और शील्ड
वे नहीं छू पातीं
उनको ताकते हुए सहमती हैं
निहारती हैं केवल बाबूजी को
कभी नहीं रोका उन्होंने
स्कूल के वार्षिक-उत्सव में भाग लेने से
भाइयों की शिकायत पर भी

देखती हैं
डबडबाई आँखों वाली माँ को जिसने
ससुराल जाती बेटियों को
कभी नहीं कहा मत बुदबुदाना नींद में
देखना मत सपना कि हड़बड़ाकर उठो
और सुबकते हुए नींद खुले

बची हुई है बीं० ए० कर चुकी सबसे छोटी बेटी
कुछ शील्ड उसने भी जीते हैं
और ताख़ों में सजा दिए हैं
कॉलेज के किसी साथी को
कनखी से देख भर लेती है
भाई के सिर के बाल गिरने लगते हैं
वह निकलता है
बहन के लिए वर ढूँढ़ने ।