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बेटियों की मुस्कान / रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'

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बेटियों की मुस्कान –

जैसे गूँज उठा

भोर में साम -गान ,

जैसे वन में तिरती

बाँसुरी की तान ,

जैसे भरी दुपहरी में

बरगद की छाया

जैसे लू के बाद

बह उठी शीतल बयार ।

मत छीनो यह मुस्कान

इसके छिन जाने पर -

रूठ जाएँगी ॠचाएँ ,

डूब जाएँगे सातों स्वर ,

रूठ जाएगी शीतल छाया ,

बयार बनेगी

अंगारों की बौछार

झुलस जाएगी सारी सृष्टि ।