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बेटी का आगमन-1 / मुकेश मानस
Kavita Kosh से
जैसे अनन्त पतझड़ के बाद
पहला-पहला फूल खिला हो
और किसी निर्जन पहाड़ से
फूट पड़ा हो कोई झरना
जैसे वसुंधरा आलोकित करता
सूरज उदित हुआ हो
ताम्र वनों में गूँज उठा हो
चिड़ियों का कलरव
जैसे चमक उठा हो इन्द्रधनुष
अम्बर को सतरंगी करता
जैसे किसी अजान गंध से महक उठी हो
कोई धूसर सांझ
ऐसे आई हो तुम
मेरे जीवन में