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बेटी गे, तोहरिओ बिहा चिलिका उमेरे / अंगिका लोकगीत

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

विवाह के बाद दुलहा व्यापार के लिए विदेश चला जाता है। उसकी दुलहन उससे मिलने के लिए व्यग्र हो उठती है तथा वह अपने पिता से आग्रह करती है कि मुझे वह रास्ता दिखला दो, जिस रास्ते से मेरा पति विदेश गया है। पिता बेटी को सांत्वना देते हुए कहता है- ‘तुम धैर्य धारा करो। तुम्हारी बातों से मेरा कलेजा फटने लगता है। अब तुम वहाँ जा भी नहीं सकती; क्योंकि उस रास्ते पर घास उग आई है, जिससे रास्ता छिप गया है।
यह गीत उस काल का स्मरण दिलाता है, जब सड़कों का प्रबंध ठीक नहीं था तथा लोग वाणिज्य के लिए सार्थवाह के साथ विदेश जाया करते थे।
इस गीत पर बँगला का कुछ-कुछ प्रभाव है।

बेटी गे, तोहरिओ बिहा<ref>विवाह</ref>, चिलिका<ref>कम उम्र का लड़का</ref> उमेंरे<ref>उम्र</ref>।
लाहास<ref>दुलहा</ref> तोरअ, बनिजें गेलौ॥1॥
बाबा हे, जेहो बटिया, लाहास मोरअ गेलअ।
सेहो बटिया हमरा, देखाये देहो हे॥2॥
बेटी गे, कत्ते<ref>कितना</ref> बोली तेॅ बोलबे, कवन बेटी गे।
तोहरो बोली गे बेटी, करेजा<ref>कलेजा</ref> साले गे॥3॥
बेटी गे, जेहो बटिया, लाहास तोरअ गेलअ।
सेहो बटिया दुबरी<ref>दूब; दूर्वा</ref>, जलमलअ गे॥4॥

शब्दार्थ
<references/>