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बेटी बेटे / शैलेन्द्र
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आज कल में ढल गया
दिन हुआ तमाम
तू भी सो जा सो गई
रंग भरी शाम
साँस साँस का हिसाब ले रही है ज़िन्दगी
और बस दिलासे ही दे रही है ज़िन्दगी
रोटियों के ख़्वाब से चल रहा है काम
तू भी सोजा ....
रोटियों-सा गोल-गोल चांद मुस्कुरा रहा
दूर अपने देश से मुझे-तुझे बुला रहा
नींद कह रही है चल, मेरी बाहें थाम
तू भी सोजा...
गर कठिन-कठिन है रात ये भी ढल ही जाएगी
आस का संदेशा लेके फिर सुबह तो आएगी
हाथ पैर ढूंढ लेंगे , फिर से कोई काम
तू भी सोजा...