भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बेटी / राजकुमार

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बेटी छै सरस्वती-लक्ष्मी, बेटी घर केॅ पहचान छिकै
बेटी छै वसुन्धरा अपनोॅ, जै पर टिकलोॅ असमान छिकै

बेटी चुनमुन रोॅ चहक मधुर, वन-उपवन रोॅ मुस्कान छिकै
बेटी छै साँझ-उषा नाखी, जै चलतें सूरज-चान छिकै

बेटी छै खेतोॅ रोॅ बाली, बेटी सें खर-खरिहान छिकै
बेटी घकुण्डा के संगें, सुपती-मौनी रोॅ गान छिकै

बेटी धरती रोॅ हरियाली, बेटी छै तेॅ ई प्राण छिकै
बेटी चहुँ दिस रोॅ छै लाली, बेटी सें नया बिहान छिकै

बेटी दर्शन-विज्ञानदीप्त, घर-घर के मंगलयान छिकै
जल-थल चाहे अंतरिक्ष हुवै, नित एकरोॅ नया उड़ान छिकै

बेटी छौं घर में भाग्य छिखौं, फुदकै छौं ई सौभाग्य छिखौं
गीता-रामायण रं पवित्र, गंगा-यमुना रं काव्य छिखौं

बेटी संस्कृति छैं शान छिकै, नवज्योति यही गतिमान छिकै
नव जीवन दै वाली विजया, जीवन-पथ छै अभियान छिकै

बेटा-बेटी में अन्तर की, दोन्हूँ सम छै संतान छिकै
बेटी में भारत माता छै, बेटा में हिन्दुस्तान छिकै

बेटी केॅ कहिनें मारै छौ, बेटी घर-घर रोॅ मान छिकै
बेटी छै....