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बेटी / सुरेन्द्र रघुवंशी
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जीवन के लिए ज़रूरी है जैसे जल
तुम भी ज़रूरी हो कल के लिए
प्रेम की धरती पर सृष्टि का बीज हो तुम
तुम होगी तो वीरान होने से बची रहेगी धरती
सृजन के गीत गूँजेंगे हवा में
साफ़-सुथरे बने रहेंगे घर-आँगन
बैठक की दीवारों पर टँगी रहेंगीं कलाकृतियाँ
विभिन्न प्रयोगों के साथ किचिन में रहेगी
नए-नए व्यंजनों की महक
तुम होगी तो बना रहेगा विश्वास
विदा होने के बाद भी
ससुराल से अपने घर लौटने का
पूछने माँ-बाप की कुशल-छेम
तुम होगी तो रंगों का महोत्सव होगा
पेड़ों पर सावन के झूले होंगे
मौसमी और पारम्परिक गीतों की हवा में
उड़ जाएगी कष्टों की धूल
और फ़ैल जाएगी ख़ुशियों की महक
तुम बचोगी तो बचेगी दुनिया
और पूरी ऊर्जा के साथ ज़िन्दगी भी ।