भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बेटे की हँसी में / विजय सिंह

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

यश के लिए

अँधेरे की काया पहन
चमकीले फूल की तरह
खिल उठती है रात

अँधेरा, धीरे से लिखता है
आसमान की छाती पर
सुनहरे अक्षरों से
चाँद-तारे

और
मेरी खिड़की में
जगमग हो उठता है
आसमान

अक्सर रात के बारह बजे
मेरी नींद टूटती है
खिड़की में देखता हूँ
चाँद को
तारों के बीच
हँसते-खिलखिलाते

ठीक इसी समय
नींद में हँसता है मेरा बेटा
बेटे की हँसी में
हँसता है मेरा समय।