बेटे पर तीन गीत / यश मालवीय
(1)
जन्मदिन बेटे तुम्हारा !
साथ लाया नया सूरज
और बीता कल हमारा
आज पंद्रह साल पीछे
देर तक देखा निहारा
जन्मदिन बेटे तुम्हारा !
तुम दुधाइन गन्ध से गेहूँ हुए
कस रही-सी देह की ख़ुशबू हुए
भीगती-सी मसें चेहरे पर उगीं
टिमटिमाती आँख में जुगनू हुए
पर हमारे ख़ून ने ही
हमें बिन बोले पुकारा
उठी गंगा की लहर-सी
झिलमिलाती भावधारा
जन्मदिन बेटे तुम्हारा
एक भाई घर कि इक बाहर खिला
पीढ़ियों तक रोशनी का सिलसिला
बहन चम्पा सी हँसी दालान में
क्यों न गहरा दुख उठे फिर तिलमिला
एक झोंका उठा पल भर
हुआ बरगद भी उधारा
मन हुआ फिर मिले हमको
ज़िन्दगी अपनी दुबारा
जन्म दिन बेटे तुम्हारा
माँ तुम्हारी खीर सी महकी फिरी
हुई दादी बीच हलुए के, गरी
लगी करने याद बाबा को ज़रा
मन भरा तो आँख भी थोड़ी भरी
नाव जैसे पा गई फिर
भँवर में खोया किनारा
सजी टोली की दुआएँ
टँका अक्षत का सितारा
जन्म दिन बेटे तुम्हारा
(2)
हमारा लाड़ला स्कूल जाता है
बहुत कुछ याद आता है
बहुत कुछ भूल जाता है
टिंफ़िन लेकर हमारा लाड़ला
स्कूल जाता है
कि तुमसे ही सुबह होती
कि तुमसे शाम होती है
कि सारी सल्तनत जैसे
हमारे नाम होती है
तुम्हारी बाँह से झोंका हवा का
झूल जाता है
तुम्हारे हाथ की रोटी
समय का स्वाद होती है
हुँकारी भर रहा मौसम
कहानी याद होती है
दुआएँ साथ देती हैं
कि मन फल-फूल जाता है
तुम्हारी बोलियों में
भोर की चिड़िया चहकती है
पुरानी डायरी में
एक कविता-सी महकती है
लहर में नाव के सँग
गीत का मस्तूल जाता है
(3)
बहुत दिनों पर घर आए हो
बेटे कैसे हो ?
चलने फिरने में, दिखने में
मेरे जैसे हो !
मेरे बाद तुम्हें रहना है
दुनिया जीनी है
हर मिठास के साथ जुड़ी
कड़ुवाहट पीनी है
आने वाला कल हो फिर भी
लगते तय से हो !
राजपाट देखना,
समझना ज़िम्मेदारी भी
आने लगीं समझ तुमको
हारी-बीमारी भी
देखो तो आइना, जान लो
कैसे, ऐसे हो !
वैसे ही बोलते, बात करते
हँस देते हो
बात-बात पर वैसे ही
जुमले कस देते हो
मैं अब तक जैसा था
तुम भी बिल्कुल वैसे हो !
अपनी आदत की मत पूछो
अचरज होता है
सूरज का वंशज भी आख़िर
सूरा होता है
बँधी नोट से बँधे,
खुले तो फुटकर पैसे हो !
दुखते हुए घाव,
यात्रा के क़िस्से कहते हैं
पाँव तुम्हारे अब मेरे
जूतों में रहते हैं
कहीं पराजय और कहीं
अपनी ही जय से हो !
अलग तरह से जीने की
तरक़ीबें गुनते हो
सुख मिलता जब अपनी अलग
राह भी चुनते हो
बाक़ायदा ठसक से हो
कब जैसे तैसे हो !