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बेदर्दी बालमा को याद करने वाले दिल / शिरीष कुमार मौर्य

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बेदर्दी बालमा को याद करने वाले दिल पहले समाज में होते थे
समाज से 60 के दशक की फिल्मों में गए फिर वापस समाज में लौटना भूल गए

साधना की सफ़ेद साड़ी में बिलखने और लता की उजली आवाज़ में चमकने वाले दिल वहीदा रहमान की सांवली सुन्दरता को सराहने वाले दिल
 
गली से गुज़रते किसी के मिल जाने पर
एक साथ खिल उठने और मुर्झा जाने वाले दिल

मेरे पिता के ज़माने के दिल वो नुकीले जूते पिता के तंग मुहरी की पतलूनें लम्ब्रेटा स्कूटर
वो पीछे मुड़े काले बाल
पिता के प्रेम मैं नहीं जानता मां जानता हूं

यह भी जानता हूं कि 65-70 में
नागपुर में पिता का हिस्लाप कालेज प्रेम से ख़ाली न रहा होगा

प्रेम जैसा अब भी बहुत कुछ है समाज में
कुछ अर्थों में पहले से बेहतर
पर उसमें साथ रहने की सम्भावनाएं अधिक हैं याद करने की कम

समाज ख़ुद अब एक याद जैसा समाज है पिता एक बूढ़े पिता हैं
दादा हैं पोते के साथ कुछ देर खेल लेते हैं बाज़ार जाकर सामान ले आते हैं

पेंशन का हिसाब रख लेते हैं

लेकिन चैन नहीं मेरे जवान दिल को
कोई प्रेम ही है
कि याद आते हैं विकट गोपनीय प्रेम करने वाले और याद करने वाले दिल
उजड़ जाने तबाह हो जाने वाले दिल
मेरे पैदा होने से बहुत पहले जवान हुए दिल मेरी जवानी में कहीं दूर बिला चुके दिल मेरे बुढ़ापे में वे मिथक-काव्य होंगे

मैं बेदर्दी बालमा तुझको मेरा मन याद करता है सुन सकता हूं
गा नहीं सकता
क्योंकि उन्हीं याद करने वाले पुराने दिलों की तरह किसी को व्याकुल बुला तो सकता हूं उतना ही आकुल किसी के पास जा नहीं सकता।