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बेदर्द यह गरीबी कितना हमें सताती / रंजना वर्मा

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बेदर्द यह गरीबी कितना हमें सताती।
कितने नये अनोखे यह दृश्य है दिखाती॥

देती नहीं है जीने यह मुफलिसी किसी को
आदर्श मूल्य सारे पल भर में है भुलाती॥

बन जाये जिंदगानी मत दर्द की कहानी
बेबस गरीब पर हैं यह खूब सितम ढाती॥

थाली रहे हमेशा खाली ही रोटियों से
जलती अगन क्षुधा की तन को रहे जलाती॥

इन चंद चीथड़ों से छुपता नहीं बदन है
आँखें हैं अश्रुपूरित दुख की कथा सुनाती॥

माँ के नयन बरसते है भूख देख सुत की
दिखला के चंद्रमा वह बच्चों को है लुभाती॥

दिनभर करें मजबूरी फिर भी न पेट भरता
खाली रहे उदर तो है नींद भी ना आती॥