भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बेदियनि बोलले बरुअवा / मगही

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मगही लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

बेदियनि<ref>बेदी से</ref> बोलले बरुअवा, जनेऊ-जनेऊ करे हे।
बाबा, के मोरा बेदिया भरावत<ref>बेदी भरावेगा। संस्कारों के अवसर पर वेदिकाएँ बनाई जाती हैं, उनपर अनेक खाने बनाये जाते हैं और उन्हें विविध रंगों से भरा जाता है। इसी को ‘बेदी भराना’ कहते हैं</ref> जनेउआ दियावत<ref>दिलायेगा</ref> हे॥1॥
हँसि-हँसि बोलथिन<ref>बोलते हैं</ref> बाबा, बोली भितराएल<ref>भरे गले से</ref>
बबुआ, हम तोरा बेदिया भराएब, जनेउआ दियाएब हे॥2॥
बेदियनि बोलले बरुअवा, जनेऊ-जनेऊ करे हे।
चच्चा, के मोरा बेदिया भरावत, जनेउआ दियावत हे॥3॥
हँसि-हँसि बोलथिन चच्चा, बोली भितराएल हे।
बबुआ, हम तोरा बेदिया भराएब, जनेउआ दियाएब हे॥4॥
बेदियन बोलले बरुअवा, जनेऊ-जनेऊ करे हे।
भइया, के मोरा बेदिया भरावत, जनेउवा दियावत हे॥5॥
हँसि-हँसि बोलथिन भइया, बोली भितरायल हे।
बबुआ, हम तोर बेदिया भराएब<ref>भराऊँगा</ref> जनेउआ दियाएब हे॥6॥

शब्दार्थ
<references/>