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बेमौत मर गए हम/रमा द्विवेदी
Kavita Kosh से
हर साँस दे दी तुमको,
अपने न बन सके तुम,
माना था तुमको हीरा,
कंकर निकल गए तुम ।
रोपा था प्रेम-पौधा,
सोचा था यह फलेगा,
लेकिन सितम से तेरे,
जड़ से उखड़ गए हम।
देखा था एक सपना,
इक जान बन जिएंगे ,
टूटा है दिल कुछ ऐसे ,
टुकड़े न गिन सके हम ।
जितने करीब आए,
तुम दूर उतने हो गए,
सोचा था क्या-क्या हमने,
बेमौत मर गए हम ।
ख्वाहिश यही थी दिल की
सब तुझपे मैं लुटा दूँ,
बदले हैं तुमने रस्ते,
कुछ भी न कर सके हम।