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बेरहिं बेरहिं तोरा बरजों कवन दुलहा / मगही

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मगही लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

बेरहिं बेरहिं<ref>बार-बार</ref> तोरा बरजों<ref>मना करता हूँ</ref> कवन दुलहा, बन बिरिदा<ref>वृन्दावन</ref> जनि जाहु हे।
बन बिरिदा एक देव बरिसल<ref>बरसते हैं</ref> भींजि जइहें<ref>भींग जायगा</ref> चन्नन तोहार हे॥1॥
हाँथी भींजल, घोड़ा भींजल, भींजल लोक बरियात हे।
हँथिया उपरे भींजल कवन दुलहा, चन्नन भरले<ref>भरे हुए</ref> लिलार हे॥2॥
डाँड़ी भींजल, डोरी भींजल, भींजल सबजी ओहार हे।
डँड़िया भीतरे भींजल कवन सुगइ, सेनुर भरले लिलार हे॥3॥
झिहिर झिहिर नदिया बहतु हैं, ओहि<ref>उसमें</ref> में कवन सुगइ नेहाय हे।
हँथिया उपर बोलल कवन दुलहा, हरवा<ref>हार, माला</ref> दहि मति<ref>दह न जा, बह न जाय</ref> जाय हे॥4॥
ई हरवा मोरा ऐरिन बैरिन, ई हरवा मोरा परान के अधार हे।
ई हरवा मोरा बाबा के हलइ<ref>है</ref> ई हरवा मोरा परान के अधार हे॥5॥
अपन मउयिा सम्हारहु<ref>सँभालो</ref> ए दुलहा, घामा<ref>धूप, घाम</ref> लगत कुम्हलाए हे॥6॥

शब्दार्थ
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