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बेरहिं बेरी कोइल रे, तोहिं बरजों हे / मगही

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मगही लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

बेरहिं बेरी<ref>बार-बार</ref> कोइल<ref>कोयल</ref> रे, तोहिं बरजों<ref>बरजती हूँ</ref> हे।
कोइल रे, आज बनवाँ<ref>वन में</ref> चरन<ref>चरने-चुगने</ref> जनि जाहु।
अहेरिया<ref>आखेट करने वाला शिकारी</ref> रजवा चलि अयतन<ref>आयेंगे</ref> हे॥1॥
अयतन तऽ आवे दहुन अहेरिया रजवा हे।
अहे सोने के पिंजरवा चढ़ि बइठम<ref>बैठूँगी</ref> हे।
अहेरिया रजवा का<ref>क्या</ref> करतन<ref>करेंगे</ref> हे?॥2॥
बेरहिं बेरी बेटी तोहिं बरजों हे।
बेटी दुअरे खेलन जनि जाहु।
कवन दुलहा चलि अयतन हे॥3॥
अयतन तऽ आवे दहुन कवन दुलहा हे।
अहे सोने पलकिया चढ़ि बइठम हे।
कवन दुलहा का करतन हे?॥4॥
एक कोस गेल<ref>गई</ref> डाँड़ी<ref>पालकी</ref> दुइ कोस हे।
अहे अम्मा रोवथि<ref>रोती है</ref> छतिया फाड़ि हे।
गोदिया<ref>गोद</ref> बेटी, आजु सुन्ना<ref>सुना, खाली</ref> भेल हे॥5॥
दुइ कोस गेल डाँड़ी, तीन कोस हे।
अहे चाची रोवथि छतिया फाड़ि हे।
सेजिया आजु बेटो, सुन्ना भेल हे॥6॥
तीन कोस गेल डाँड़ी, चार कोस हे।
अहो भउजी<ref>भाभी</ref> रोवथि छतिया फाड़ि हे।
भनसा<ref>रसोईघर</ref> ननदी आजु सुन्ना भेल हे॥7॥
चार कोस गेल डाँड़ी, पाँच कोस हे।
अहे सखी सब रोयथिन छतिया फाड़ि हे।
सलेहर<ref>वह सखी, जिससे अपने मन की बात कही जाय या उचित परामर्श लिया जाय</ref> आज सखी सुन्ना भेल हे॥8॥

शब्दार्थ
<references/>