बेरोजगार भाई के लिए / विमलेश त्रिपाठी
उदास मत हो मेरे भाई
तुम्हारी उदासी मेरी कविता की पराजय है
नहीं मेरे पास तुम्हारे लिए जमीन का कोई टुकड़ा
जहाँ उग सकें तुम्हारे मासूम सपने
न कोई आकाश
जहाँ रोटी की नयी और निजी परिभाषा तुम लिख सको
अब वह समय भी नहीं
कि दुनियादारी से दूर हम निकल जायें
खरगोशों का पीछा करते गंगा की कछार तक
लौटें तो माँ के आँचल में ढेर हो जायें
क्या तुम्हें उन शब्दों की स्मृति कचोटती है
जिसे बोया था हमने घर की खोंड़ में
हफ्तों की थी रखवाली
किया था टोना-टोटका उसे बचाने को बुरी नजरों से
यह जो उठ जाते हो
आधी-आधी रात किसी दुःस्वप्न की छाया से
पसीने-पसीने होकर
क्या तुम्हें बहुत याद आता है पिता का वह कवच
जिसमें हमारा साथ सुरक्षित था
तुम्हें कैसे समझाऊँ मेरे सहोदर
कि मेरी उदासियों में
कितने धीमे-धीमे शामिल हो रहे हो तुम
यह तुम्हारी नहीं मेरे भाई
यह मेरी कविता में चलते-फिरते
सदियों के एक आदमी की उदासी है
उदास मत हो मेरे अनुज
मेरे फटे झोले में बचे हैं आज भी कुछ शब्द
जो इस निर्मम समय में
तुम्हारे हाथ थामने को तैयार हैं
और कुछ तो नहीं
जो मैं दे सकता हूँ
बस मैं तुम्हें दे रहा हूँ एक शब्द
एक आखिरी उम्मीद की तरह।