Last modified on 17 जून 2017, at 16:28

बेवजह आँख भर गयी फिर से / आनंद कुमार द्विवेदी

जुस्तजू सी उभर गयी फिर से
शाम भी कुछ निखर गयी फिर से

तेरा पैगाम दे गया कासिद
जैसे धड़कन ठहर गयी फिर से

तेरी बातों की बात ही क्या है
कोई खुशबू बिखर गयी फिर से

जिंदगी! होश में भी है, या कहीं
मयकदे से गुज़र गयी फिर से ?

रात इतनी वफ़ा मिली मुझको
जैसे तैसे सहर हुयी फिर से

वो तो बेमौत ही मरा होगा
जिस पे तेरी नज़र गयी फिर से

तेरा दीदार मिले तो समझूं
कैसे किस्मत संवर गयी फिर से

कहके ‘आनंद’ पुकारा किसने
बेवजह आँख भर गयी फिर से