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बेसलान के बच्चे / बाजार में स्त्री / वीरेंद्र गोयल

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बहता रहा खुले हाथों से पानी
और अनियंत्रित मूत्र
बह जाए या पी ले
नकाब के पीछे उदास चेहरा
झूलता संधि-रेखा पर
कूदे या न कूदे
हिरोशिमा! तुम दुख का शाश्वत प्रतीक हो
नागासाकी! तुम दुख की अमर कहानी हो
कार्यवाही अधिकृत या अनधिकृत
लाशों का ढेर तो लगाती है
जलाओ या दफनाओ
धरा का बोझ तो बढ़ाती है
चीखते-चिल्लाते बैठ गये हैं सुर
आँसू बदल गये फूलों में
रँग लिया सुर्ख खून का
जो सबसे ज्यादा प्यारा है
उस पर वार करो
क्या उचित है?
अपने से हुए अन्याय के बदले में
दूसरे निर्दोषों से बदला लेना
बारूदी सुरंगें
गोलियाँ, हथगोले
बम, तोपें
रौंदते धरा की छाती
थर्राते इस ग्रह का दिल
पर्वत विशाल
पेड़, पहाड़, मछलियाँ
परिन्दे, कीट, पतंगे
जानवर सूँघते गंध बारूदी
लौट जाना चाहते हैं अजन्मे होकर
क्या इसी दिन के लिए
क्या इसी क्षण के लिए
सींचा था बीज
फूल खिलाने को
जहरीली हवाओं ने
झुलसा दिया है बचपन
जीने से पहले मरण
खिलने से पहले क्षरण
कौन जात है तेरी?
कैसा धर्म?
किसका धर्म?
किसके लिए धर्म?
नकाब के पीछे उदास चेहरा
झूलता है संधि-रेखा पर
कूदे या न कूदे
क्या खुद कुछ खोया है?
तो दूसरों को भी मर जाना चाहिए
मिलेगी तभी शांति
होगी तभी नफरत ठंडी
क्या पाओगे यहाँ-वहाँ युद्ध करवाकर?
कितने मुल्क आज भी बेहाल हैं
खड़ा किया था जो भस्मासुर
वही तुम्हें निगलने को तैयार है
कठपुतलियाँ हो गईं आजाद
हक जता रही हैं
खुद को नचाने के जुर्म में
अपने मालिक को सता रही हैं
इन सबके बीच
बच्चे और स्त्रियाँ
बंधक बनाये जा रहे हैं
मारे जा रहे हैं,
बेघर, अनाथ हो रहे हैं
कौन देगा उनको प्यार?
कौन देगा उनको घर-बार?
नकाब के पीछे उदास चेहरा
झूलता है संधि-रेखा पर
कूदे या न कूदे
एक दीयासलाई
आग का एक कण
काल का एक क्षण
स्लेट पर लिखी इबारत जैसे
जीवन को मिटा देता है
साम्राज्यवाद या आतंकवाद
दो पहलू हैं एक ही सिक्के के
भाषा है अलग
एक दायरे में
एक दायरे से बाहर
ठहराते एक-दूसरे को गलत
उनका क्या करें
जो इधर भी नहीं
उनका क्या करें
जो उधर भी नहीं
बीच में कोई जगह नहीं बची
चिल्लाओ,
जोर से चिल्लाओ
गला खोलकर चिल्लाओ
कम-से-कम बह निकलेगा दुख
बनेंगे आँसू सुर्ख फूल लाल रक्त से
लौटोगे जब भी
स्मृतियों में सुनोगे धमाके
बंद हो जायेंगे सब ठहाके
कुछ भी ऐसा होने से
जीवन बदल जाता है
आदमी तो आदमी
पत्थर भी पिघल जाता है
नकाब के पीछे उदास चेहरा
कूद चुका है कगार के दूसरी तरफ
अब लौटकर नहीं आयेंगी स्मृतियाँ
अब लौटकर नहीं आयेंगी चीख
अब लौटकर नहीं आयेंगे बच्चे।