भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बेहतर आहत रही ये अक्षरों वाली गली / शिव ओम अम्बर
Kavita Kosh से
बेहतर आहत रही ये अक्षरों वाली गली,
पर सदा अक्षत रखी है गीत की गंगाजली।
सूर कह लो, मीर कह लो या निराला या जिगर,
हर जुबाँ में जी रही है दर्द की वंशावली।
इस नगर में कौन बाँचे सतसई सौन्दर्य की,
ये नगर हल कर रहा है भूख की प्रश्नावली।
राम जाने क्या भविष्यत् है हमारे बाग का,
चम्बली हर फूल है तो नक्सली है हर कली।