बेहतर तो यही है ... / ज़करिया मोहम्मद / असद ज़ैदी
बेहतर तो यही है कि तुम जब वहाँ हो तो ऐसे रहो जैसे वहाँ नहीं हो। एक मानूस जगह में अजनबी जैसे, तिरस्कृत अपने वतन अपने क़बीले की ज़मीन पर । इससे भी अच्छा यह है कि तुम रोग़न से दीवार पर लिख दो, "मैं यहां का नहीं हूँ", और फिर अपने डैने तौल कर उड़ जाओ कभी वापस न लौटने के लिए।
मैं किसी मामूली विछोह की नहीं बल्कि तेज़ हवा और चक्रवातों की बात कर रहा हूँ। उल्काओं के इर्द गिर्द टप टप करती बारिश का । जिसके पास डैने हैं कभी अजनबी नहीं होगा । सबसे ज़रूरी है चौकस रहना । ऐसा न हो तुम्हारे अनजाने कोई बेल आकर तुम से लिपट जाए धीरे-धीरे तुम्हारे कन्धों तक पहुँच जाए और फिर तुम्हारे सीने को भी जकड़ ले। ऐसा हुआ तो तुम, बस, एक कुन्दा, एक खम्बा बनकर रह जाओगे। इस सबसे सुन्दर बात यह होगी कि ग़ुब्बारा बनो, कि ज़रा सी हवा तुमको आसमान में ले जाए और एक छोटी सी सुई एक क्षण में तुम्हारे वजूद को मिटा दे।
(अरबी से सिनान अन्तून Sinan Antoon के अंग्रेज़ी अनुवाद पर आधारित।)
अँग्रेज़ी से अनुवाद : असद ज़ैदी
लीजिए, अब इसी कविता का सिनान अन्तून का अँग्रेज़ी अनुवाद पढ़िए
Zakaria Mohammed
Poem
It is best not to be here even when you are. To be a stranger in a familiar land, ostracized in the land of your tribe. It is even best to spray paint on a wall, “I'm not from here,” and then shake off your wings and fly with the intention of never returning.
I'm not speaking of light estrangement, but rather of winds and cyclones. Of rain trickling down around comets. He who has a wing will never be a stranger. The most important thing is to be vigilant. Never let a vine catch you unawares and climb your shoulder to tie its stem to your lapel. If you allow that, you will become a peg. More beautiful than all of this is to be a balloon: a handful of air will lift you to the skies and a pinprick will erase you in seconds.
Translated from the Arabic by Sinan Antoon