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बेहतर दुनिया के लिए / रजत कृष्ण
Kavita Kosh से
पत्तियाँ समझती हैं
कब झड़ना है उन्हें
डगाल से
कि फूटें कोंपले नईं ।
जानती हैं चिड़िया सभी
कितना सकेलना है
दाना-पानी
कि बची रहे चियाँ उनकी
भूख-प्यास से ।
गाय, बैल, भैंस
ऊँट, बन्दर, भालू
चीते सहित चौपाए सभी
जानते कि कितना चाहिए
शावकों को दूध
और स्वयं के लिए
चारा कितना
कि चलता रहे जीवन
बड़ी समझदार मानी जाती है
आदमजात
फिर भी तय नहीं कर पाती
वह प्रायः
कि कितनी चाहिए रोटी
कितना कपड़ा
और मकान कितना बड़ा ।
सोचता हूँ —
कितना अच्छा हो
कि आदमी रुपयों को
पत्तों की तरह समझे
चिड़ियों की निगाह से देखे
दाना-पानी को ।
गाय-बैल और ऊँट आदि की
निगाहों से परखे
मकान को ।