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बेहतर है / उमा अर्पिता
Kavita Kosh से
जब समझते-बूझते
सलीबों पर
टाँग दी जाएँ खुशियाँ
और विवशताओं की कीलें ठोककर
बहने दिया जाए
इच्छाओं का खून, तब
बहते खून की
गंध महसूसने और किसी
अपने के हाथों
उपहारस्वरूप बाँटी गई
उदासियों की लंबाई-चौड़ाई
नापने से बेहतर है,
कब्र की नपी-तुली
लंबाई-चौड़ाई लेकर
उसका क्षेत्रफल
निकालते हुए
उदास शामों को
गुजारना...!