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बेहद दुखी हैं हम, क्या करें? / कमलकांत सक्सेना

बेहद दुखी हैं हम, क्या करें?
मिलते नहीं हो तुम, क्या करें?

यह तुम्हारी बेरुखी का फल
खिलता नहीं मौसम, क्या करें?

हो न क्योंकर आइना उदास
तुमने दिया है ग़म, क्या करें?

हर क्षण तुम्हारी याद में ही
तपता हुआ यौवन, क्या करें?

वक्त का संगीत भी है चुप
बन्दी हुआ है मन, क्या करें?

तुम वहाँ आराम से रह लो
सूना यहाँ हर क्षण, क्या करें?

जब भी मुस्कराया है 'कमल'
जलने लगा सावन, क्या करें?