बे-ऐतदालियों से सुबुक सब में हम हुए / ग़ालिब
बे-ऐतदालियों से, सुबुक<ref>लज्जित</ref> सब में हम हुए 
जितने ज़ियादा हो गये उतने ही कम हुए 
पिन्हां था दामे-सख़्त क़रीब आशियाने के 
उड़ने न  पाये थे कि गिरफ़्तार हम हुए 
हस्ती हमारी अपनी फ़ना पर दलील है 
यां तक मिटे कि आप हम अपनी क़सम हुए 
सख़्ती-कशाने-इश्क़<ref>प्रेम का दुःख सहने वाले</ref> की पूछे है क्या ख़बर 
वो लगा रफ़्ता-रफ़्ता सरापा अलम<ref>सर से पांव तक दुःख की मूर्ती</ref> हुए 
तेरी वफ़ा से क्या हो तलाफ़ी, कि दहर में 
तेरे सिवा भी हम पे बहुत-से सितम हुए 
लिखते रहे जुनूं की हिकायत-ए-ख़ूंचकां<ref>रक्त-रंजित की कहानी</ref> 
हरचंद उसमें हाथ हमारे क़लम<ref>कट जाना</ref> हुए
अल्ला-रे तेरी तुन्दी-ए-ख़ूं, जिस के बीम़<ref>भय</ref> से 
अज्ज़ा-ए-नाला<ref>रुदन के टुकड़े</ref> दिल में मेरे रिज़्क़े-हम हुए 
अहले हवस की फ़तह है, तर्क-ए-नवर्द-ए-इश्क़<ref>प्रेमोन्माद के संघर्ष को त्याग देना</ref> 
जो  पाँव उठ  गए वही उन के अ़लम हुए 
नाले अदम में चंद हमारे सुपुर्द थे 
जो वां न खिंच सके सो वो यां आके दम<ref>सांस लेना</ref> हुए 
छोड़ी 'असद' न हमने गदाई में दिल-लगी 
साइल<ref>भिखारी</ref> हुए तो आ़शिक़-ए-अहल-ए-करम हुए
	
	