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बे-थाह समन्दर में सतह ढूँढ रहा हूँ / रवि सिन्हा
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बे-थाह समन्दर में सतह ढूँढ़ रहा हूँ
सूरज से लड़ के ख़ुद की सुबह ढूँढ़ रहा हूँ
कुल खेल अनासिर<ref>तत्व, पंचभूत (elements)</ref> का ख़ला<ref>शून्य, अंतरिक्ष (space)</ref> में ये कायनात
मैं ख़ाक के पुतले की जगह ढूँढ़ रहा हूँ
मुमकिन ये था कि कुछ भी न होता वजूद में
अब है तो फिर होने की वजह ढूँढ़ रहा हूँ
डूबा था अपनी ज़ात<ref>हस्ती, अस्तित्व (being, existence)</ref> के असरार<ref>मर्म, भेद (secrets, mysteries)</ref> के पीछे
जीने के लिये साँस की रह ढूँढ़ रहा हूँ
तुम ने कहा कि इश्क़ से आलम का है वजूद
मैं हूँ कि अब इस बात की तह ढूँढ़ रहा हूँ
शब्दार्थ
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