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बैग / हरमीत विद्यार्थी
Kavita Kosh से
मेरे बैग की एक जेब में
तिड़के हुए सपने पड़े हैं
दूसरी में
अधूरी ख़्वाहिशों का पैकेट
युगों पुरानी यादों को
मैंने तहा कर
रखा है इसमें
इस बैग के एक कोने में
कुछ पुराने ख़त पड़े हैं
न भी पड़े होते
तो भी कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता
तहरीर उनकी
शब्द-दर-शब्द याद है मुझे
बहुत सम्भालकर रखता हूँ मैं यह बैग
अपने आपसे भी
फिर भी पता नहीं
क्या घटित होता है मेरे साथ
जब भी सफ़र पर जाता हूँ
यह बैग मेरे
संग-संग चलने लगता है
ढली रात में
किसी कमरे के काले कोने में
अपने आप ही
खुलना शुरु हो जाता है यह बैग
टुकड़ा-टुकड़ा ख़्वाहिश…
शब्द शब्द ख़त…
बहुत तड़के जब सुबह का तारा
मेरे माथे पर देता है दस्तक
मैं इस बैग को
पुन: सहेजना शुरू कर देता हूँ ।