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बैचैन बहुत रूह जो पैकर के लिये है / शहरयार
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बैचैन बहुत रूह जो पैकर के लिये है
ये आखिरी तोहफा कि समंदर के लिए है
किस वास्ते ये तेरी तवज्जो का है मरकज़
इस शाख़ का हर फूल तो सरसर के लिए है
जो सामने होता है नहीं दीद के क़ाबिल
ये आंख किसी दूर के मंज़र के लिए है
आवाज़े-दरा देर से ललकार रही है
तलवार जहां भी है तेरे सर के लिए है।