भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बैठकर मेरे सुर में गाओ / गुलाब खंडेलवाल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


बैठकर मेरे सुर में गाओ
सात सुरों में इस जीवन के सारे खेल दिखाओ

'सा' शैशव की क्रीड़ा आँके
चित्र खींच दे तिरछे बाँके
'रे' में तरुण प्रेम-पीड़ा के
मादक रंग सजाओ
 
'ग' प्राणों में नव गति भर दे
तारे तोड़ पगों पर धर दे
'म' मन को महिमामय कर दे
ऐसी तान सुनाओ
 
'प' पर पलटे जीवन-धारा
'ध' पर धँसने लगे किनारा
'नी' पर भुला नाच यह सारा
घर की याद दिलाओ

बैठकर मेरे सुर में गाओ
सात सुरों में इस जीवन के सारे खेल दिखाओ