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बैठलखाना कुँअर सिंह के बाहर खूब जमल बा / हरेन्द्रदेव नारायण

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बैठलखाना कुँअर सिंह के बाहर खूब जमल बा,
झालर लागल बा, नफीस चंदोवा एक टँगल बा।।
दियाधार के दीपन से मृदु मन्द जोत आवत बा,
एक गुनी बैठल बा, सारंगी पर कुछ गावत बा।।

अइलन बाबू कुँअर सिंह सहसा भीतर से बाहर,
कोलाहल कुछ भइल, विपिन में बाहर आइल नाहर।।
हड्डी ठोस पेसानी दमकत, पुष्ट वृषभ कंधा बा,
अस्सी के बा उमर, भइल का ? कहे बूढ़, अन्धा बा।।

सिंह चलन रवि नयन जलत जुग सुगठित चंड भुजा बा,
अइसन डोलेला, जइसे डोलेला विजय पताका।।
नवजुग के हम दूत कहीं या जय के याकि विभा के,
केन्द-बिन्दु मानुस-सपना के, साहस, सत्य, प्रभा के।।

अइलन झोंका से बैठक में, जुग जइसे आवेला,
सांती बीच समर आ जाला, अमर सत्य आवेला।
या जइसे निकलेला दुख-सुख धरम के पुतला,
या कि मरन में अमर बनल आवे अनित्य के पुतला।।

छोटन रागन के समाज में महाराग आवेला,
फूसन के ढेरन में जइसे कहीं आग आवेला।।
जिनगी के अँधियाली में या पुन्न भाग आवेला,
कोलाहल भय स्वार्थ बीच जइसे विराग आवेला।।

बइसे अइलन कुँअर सिंह जी,’जय जय, जय जय’ गूँजल,
ब्राह्मन-कुल वो बन्दी जन के चिर मंगल लय गूँजल।।
जइसे अइला से प्रभात के चिड़िया-कुल चहकेला,
भोरहरी के हवा चले तो कमल फूल महकेला।।

जिनकर हड्डी में सिमटल होखे जोती के सागर,
जिनकर मांस-पेसियन में सूतल हो अमित प्रभाकर।।
जिनकर चमकत नयन-पुत्तली में सूरज-चन्दा हो,
वंक भौंह में सब कुभाल के जहाँ मरन-फंदा हो।।

जे हो महासिन्धु साहस के जहाँ गिरे सब धारा,
जे असीम गौरव हो जेकरा में ना कहीं किनारा।।
अइसन माँझी जे आँधी में नौका खोल चलेला,
तलहथ्थी में भाग मले, ओकरा के वृद्ध कहेला।