बैठे हैं गुपाल लाल प्यारी बर बालन में,
करत कलोल महा मोद मन भरिगे।
ताही समै आती राधिका को दूर ही ते देखि,
सौतिन के सकल गुमान गुन जारिगे॥
‘चंद्रकला’ सारस से तिरछी चितौनि वारे,
नैन अनियारे नैकु पी की ओर ढरिगे।
नेह-नेह नायक के ऊपर ततच्छन ही
तीच्छन मनो भव के पाँचों बान झरिगे॥